कानपुर का गंगा मेला

 कानपुर में होली के बाद लगने वाले अनुराधा नक्षत्र (कुल २७ नक्षत्र) में गंगा मेला मनाया जाता है. होली के बाद कई दिन तक रंग चलने की परंपरा तो पूरे देश में है. कानपुर में हटिया जनरलगंज कलक्टर गंज नौघड़ा आदि व्यवसायिक क्षेत्र थे और इनमें काम करने वाले आसपास के गांवों के थे जो कि होली मनाने और फसलों की  कटाई हेतु गांव जाते थे और ७ से १० दिन बाद ही आते थे ऐसी स्थिति लगभग पूरे देश में ही रहती थी. होली के बाद गांवों में लगने वाले मेले में अक्सर हम ५० से ६० की उम्र के लोग अपने बुजुर्गों का हाथ पकड़ या कंधे पर बैठ गये होगें उपरोक्त पंक्तियों में अपना बचपन याद करिए.

गंगा मेला कब शुरू हुआ इसकी स्पष्ट तिथि तो नहीं मिली पर इसके पीछे एक सबसे प्रचलित कथा यह है कि १९४२ में कानपुर के तत्कालीन कलेक्टर ने चरम पर स्वतंत्रता आंदोलन को दबने हेतु होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया. गुलाब चंद सेठ तत्कालीन एक बड़े व्यापारी जो कि होली का आयोजन करते थे, उन्होंने होली को रोकने से साफ इंकार किया और उनको गिरफ्तार कर लिया गया. जिसका विरोध करने पर जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त पार्षद, बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां आदि को गिरफ्तार किया गया ओर सरसैया घाट स्थिति जेल में बंद कर दिया गया. इस गिरफ्तारी पर पूरे शहर में विरोध होने लगा. विरोध से प्रशासन ने गिरफ्तारी का आदेश वापस ले लिया और ८वें दिन सभी को रिहा कर दिया गया. रिहाई के दिन अनुराधा नक्षत्र था और रिहाई की खुशी में शहर के लोग सरसैया घाट पर इकठ्ठे होकर होली मनाई.

उपलब्ध जानकारी के आधार पर. आपके सुझावों का आकांक्षी 

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